Sunday, May 19, 2013

श्रेनुज यानि बिहार की पहली हीरा तराशने की कंपनी के बिहार आने की कहानी

मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार पहला हीरा तराशते हुए
अगस्त 2011 की एक शाम मैं और रविशंकर श्रीवास्तव सर (अपर आयकर आयुक्त एवं बिहार फ़ाउंडेशन मुंबई चैप्टर के अध्यक्ष) फोन पर बातें कर रहे थे। चर्चा अपर्णा की हो रही थी। बातों-बातों में बात निकली कि अपर्णा के अलावा और कौन से क्षेत्र हैं, जिसमे बिहार में निवेश की संभावना है। बातों में मैंने बताया कि कुछ वर्षों पहले तक जेम्स और जेवेलरी से भारत सरकार को सबसे ज्यादा आय हुआ करती थी और बिहार में तो यह क्षेत्र खाली है। उसी समय रविशंकर सर ने बताया कि एक हीरे की कंपनी है जो अपना एक नया प्लांट लगाने के बारे में सोंच रही है। पर वो लोग गुजरात या महाराष्ट्र में उसे खोलने के बारे में सोंच रहे हैं। किसी ने दो दिन पहले ही उनसे इस बात की चर्चा की थी। फिर हमने बिहार में इस उद्योग के आने की संभावनाओं पर चर्चा की। हमें पता था की सूरत और मुंबई में स्थापित इस उद्योग में काफी बिहारी लोग काम करते हैं। सर ने उस कंपनी के प्रतिनिधि से बिहार को भी एक संभावित निवेश स्थल के रूप में परखने हेतु बात करने के बारे में कहा। श्रीवास्तव सर ने बात की और कंपनी के प्रतिनिधि बिहार आ कर देखने के लिए तैयार हो गए।
प्लांट में कार्यरत कारीगर
उदघाटन कार्यक्रम में श्री नीतीश कुमार, सुशील मोदी और श्रेयस दोषी
      नवंबर 2011 में कंपनी के एक प्रतिनिधि राजेश कोठारी बिहार आए। बिहार फ़ाउंडेशन के कार्यालय में उनसे पहली मुलाक़ात हुई। सरकार की औद्योगिक नीति और अन्य सुविधाओं इत्यादि पर चर्चा हुई। श्री कोठारी कुछ हद तक सकारात्मक हुए। इसी मुलाक़ात में हुई आत्मीयता में श्री कोठारी ने अपने साथ करीब दो साल पहले बिहार में हुई एक घटना का जिक्र किया। जो कुछ भी उन्होने बताया वो इस प्रकार था – 'श्री कोठारी अपने पूरे परिवार के साथ पावापुरी के भ्रमण पर थे। संध्या पूजा के समय उन्हे कुछ देर हो गयी। जाड़े की रात थी। जिस होटल में वो लोग ठहरे थे वह कुछ दूर था। उनके परिवार की औरतें साथ थी, गहने पहने हुए। यह उनकी पहली बिहार यात्रा थी और बिहार के बारे में जो कुछ भी उन लोगों ने सुन रखा था उससे वो काफी भयभीत थे। डरते हुए वो लोग धीरे-धीरे होटल की तरफ बढ्ने लगे। कोई सवारी नहीं दिख रही थी। रास्ता भी ठीक से मालूम नहीं था। थोड़ी दूर आगे जाने पर एक अधेड़ उम्र के व्यक्ति मिले। उनसे रास्ता पूछा तो उन्होने अपने साथ चलने को कहा। इन लोगों को डर भी लग रहा था पर कोई और चारा भी नहीं था। बातों में उस व्यक्ति को इन लोगों की समस्या का एहसास हो गया। थोड़ी दूर आगे जा के उन्होने एक दरवाजा खटखटाया। एक सोये हुए व्यक्ति को उठाया और इनलोगों को होटल तक छोड़ने को कहा। जिस उस व्यक्ति ने उठाया, वह एक ऑटो चालक था। साथ ही उस व्यक्ति ने उस ऑटो चालक को इनलोगों से भाड़ा नहीं लेने को कहा। डरते हुए ये लोग उस ऑटो में सवार हुए। उस ऑटो वाले ने उनलोगों को होटल तक छोड़ दिया। वो भाड़ा भी नहीं ले रहा था, पर इन लोगों ने जबरदस्ती कुछ पैसे उसकी जेब में डाल दिये।' यह एक छोटी सी पर बड़ी घटना थी। जब श्री कोठारी यह घटना मुझे सुना रहे थे, तो एक चमक दिखाई दी उनकी आंखों में। यह विश्वास और भरोसे की चमक थी। उसके बाद मैं उनलोगों को लेकर उस समय उद्योग विभाग के प्रधान सचिव श्री सी0 के0 मिश्रा के पास गया। सुरक्षा के प्रति वो लोग काफी हद तक आसवस्त हो चुके थे। मुझे लगता है कि उस रात की घटना ने भी इसमे अहम भूमिका निभाई थी। सिर्फ बिजली के बारे में उन्होने जिक्र किया। श्री कोठारी ने बताया कि डामण्ड प्लांट की कुछ मशीनों को निरंतर बिजली की आवश्यकता होती है। सी0 के0 मिश्रा सर ने भी हर संभव सहयोग का भरोसा दिलाया। सरकार के वरीय अधिकारी के सकारात्मक रुख से उन लोगों को कुछ और भरोसा हुआ।  पटना से जाने के बाद कंपनी के प्रतिनिधि लगातार संपर्क में रहे। जमीन के दाम, फ्लैट का किराया, सही लोकेशन और तमाम तरह की जानकारी फोन पर लेते रहे। कंपनी के प्रतिनिधि अपने स्तर से भी जानकारी एकत्र करते रहे। पूरी स्थिति का आकलन किया। तब जा कर निवेश करने का मन बनाया।

      बिहार फ़ाउंडेशन द्वारा 15 अप्रैल 2012 को मुंबई में देश के जाने माने उद्यमियों से माननीय मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार की मीटिंग कराई गयी। यहीं श्रेनुज के चेयरमैन श्री श्रेयस दोषी भी मुख्यमंत्री से मिले और बिहार में निवेश करने की सहमति जताई। इस मीटिंग में देश भर के जाने माने उद्यमियों ने मुख्यमंत्री से पहली बार सीधा संवाद किया। तमाम तरह के प्रश्न पूछे। सकारात्मक बात यह थी किसी ने भी बिहार में सुरक्षा से संबन्धित प्रश्न नहीं पूछा। इस मीटिंग हेतु मैंने गुजरात, महारास्त्र, कर्नाटक एवं बिहार की औद्योगिक नीतियों के बिन्दुओं को तुलनात्मक रूप में बना कर दिया था। साथ ही राज्य की अन्य नीतियों के मुख्य बिन्दुओं को भी अलग-अलग बना कर दिया था। उद्यमियों ने स्वीकार किया कि बिहार की औद्योगिक नीति काफी अच्छी है और इस बात का पता उन्हें पहली बार चला है।
माननीय मुख्यमंत्री को पुष्पगुच्छ भेंट करते श्री रवि शंकर श्रीवास्तव
इसके बाद बियाडा से ज़मीन हेतु एवं राज्य निवेश प्रोत्साहन परिषद से अनुमति हेतु आवेदन किया गया। सारी प्रक्रियाओं के पूरा होने एवं स्थान आवंटित होने के बाद कंपनी के लोगों ने काम शुरू किया। 16 मई को माननीय मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार ने पाटलिपुत्र, पटना में माननीय उप-मुख्यमंत्री श्री सुशील कुमार मोदी, श्रीमति रेणु कुमारी, माननीय मंत्री, उद्योग एवं श्री जनार्दन सिंह सिगरीवाल, माननीय मंत्री, श्रम संसाधन विभाग की उपस्थिति में इस कंपनी के ट्राइल प्रॉडक्शन का उदघाटन किया। श्री नीतीश कुमार ने पहला हीरा काट कर इस प्लांट की शुरुआत की। इस हीरे को बाद में कंपनी ने मुख्यमंत्री को भेंट किया, जिसे मुख्यमंत्री ने पटना संग्रहालय को भेंट कर दिया। यह एक ऐतिहासिक घटना थी, जिसे आने वाली पीढ़ियाँ याद रख सकें इसी उद्देश्य से यह पहला हीरा जो बिहार में काटा गया उसे पटना संग्रहालय को दिया गया जिसे वहाँ प्रमुखता से प्रदर्शित किया जाएगा। इस अवसर पर कंपनी के प्रमुख श्री श्रेयश दोषी ने अपनी कंपनी श्रेनुज के संबंध में बताया कि यह 108 साल पुरानी कंपनी है, जिन्होने 1980 में पहली बार लेजर तकनीक का प्रयोग कर हीरा काटने की शुरुआत की थी। दुनिया के पंद्रह देशों में इस कंपनी का कारोबार है। कंपनी ने पटना के इस प्लांट में 150 बिहारी कारीगरों से शुरूआत की है। सभी सूरत में इस व्यवसाय से जुड़े थे। उदघाटन के दिन उन सभी के चेहरों पर जो खुशी के भाव थे उसका अंदाजा नहीं लगाया जा सकता। यह खुशी थी अपनी जमीन से वापस जुडने की, अपने लोगों के करीब आने की। इन कारीगरों के प्रमुख सुनील सिंह से उदघाटन के चार दिन पहले उस वक़्त मुलाक़ात हुई थी जब मैं प्लांट में उदघाटन समारोह की तैयारियों के संबंध में पाटलिपुत्र गया था। सुनील सिंह ने बताया कि – 'सर, मैं बीस साल से सूरत में यह काम कर रहा था। कभी सपने में भी नहीं सोंचा था कि बिहार में हीरा तराशने की कोई फ़ैक्टरी लगेगी। आज यहाँ आप लोगों के प्रयास से यह प्लांट लग गया है। अभी भी यकीन नहीं हो रहा है। मेरी पत्नी और बच्चे अभी भी सूरत में हैं। उन्हे वापस ले आऊँगा अबमेरे बूढ़े पिताजी छपरा में रहते हैं। पहले साल में एक या दो बार ही आ पाता था, पर अब यहाँ प्लांट लग जाने से मैं अपने पिता से भी समय-समय पर मिल सकूँगा।' सारे कारीगर अपने रिशतेदारों और इस क्षेत्र में काम करने वाले बिहारी मूल के अन्य कारीगरों से फोन पर यह खबर दे रहे थे। यह बता रहे थे कि अब बिहार से बाहर नहीं रहना पड़ेगा। अपने घर के करीब ही रह सकते हैं। उन कारीगरों के बिहार में रहने वाले रिश्तेदार भी काफी खुश हैं इस बात से। किसी को भी सहसा यकीन नहीं हो रहा है कि सचमुच ऐसा हो रहा है। एक सपने जैसा है सब।

चकरी जिस पर हीरा तराशा जाता है
      अभी तो यह सिर्फ शुरुआत है। अगले दो सालों में कंपनी ने अपनी पूर्ण क्षमता में कार्य करने का लक्ष्य रखा है। उस समय 1500 लोगों को रोजगार मिलेगा। और सभी लोग पूर्णतह बिहार के ही होंगे। कंपनी खुद ही लोगों को प्रशिक्षित करेगी और अपने यहाँ ही रोजगार देगी। कुल निवेश 600 करोड़ का होगा। लगभग तीन लाख हीरे प्रतिवर्ष तराशे जाएंगे। इन हीरों को ज़्यादातर अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में भेजा जाएगा। इस व्यवसाय में भारत का हिस्सा 90 प्रतिशत है और इस 90 प्रतिशत हिस्से में 30 प्रतिशत कारीगर बिहार के हैं। अतः हमारी योजना है इस व्यवसाय को घरेलू उद्यम बनाने की। ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों को रोजगार मिल सके। इसकी पोलिशिंग मशीन जिसे चकरी (व्हील) कहते हैं, की कीमत एक लाख रुपए है। जो किसी घरेलू उद्यम के हिसाब से बहुत ज्यादा नहीं है। इस मशीन को लोग खरीद लें और कंपनी से हीरे ले कर उसे अपने घर में तराश कर कंपनी को वापस दे दें। यह ठीक वैसे होगा जैसे लिज्जत पापड़ उद्योग में होता है। लोग कंपनी से पापड़ का आटा रोज अपनी क्षमता के हिसाब से घर ले जाते हैं और उसे पापड़ बना कर लिज्जत को वापस दे जाते हैं। गुजरात में हीरे की ऐसी चकरी कई इलाकों में चलती है। एक सपना तो रास्ते पर आया है। अगर सब कुछ सही रहा और इसे घरेलू उद्योग में स्थापित किया जा सकेगा तो निश्चय ही हजारों घरों की नियति बदल जाएगी। उम्मीद है यह सपना भी सच होगा।

Monday, April 22, 2013

Nitaqat System in Saudi Arab

Recently Ministry of Labour, Govt. of Saudi Arab has introduced a new law named 'Nitaqat System' for promoting employment of local people in private firms. This system would replace old 'Saudization' program. As per an estimate about 2.5 million Indian are employed in the Kingdom of Saudi Arab (KSA). Saudi govenment has given three months time for correction of Visa status and other documents. It is expected that only those expatriates shall be affected by this program whose documents are not proper. Indian Embassy of Saudi Arab has provided an e-mail address  labour.riyadh@mea.gov.in for providing assistance to Indian nationals who are affected by the Nitqat program. All the Non Resident Biharis (NRB) working in KSA can contact officials of Indian Embassy or visit its website http://www.indianembassy.org.sa/ for updated information and assistance if they are affected by this Nitqat Program.

NITQAT PROGRAM IN A NUTSHELL

NITAQAT (ZONES) SYSTEM
In a Nutshell
  • 41 classifications of employment sectors
  • 5 company classifications based on employee tally
  • 4 compliance-related and disciplinary zones
5 Company Classifications (based on total employee tally)
1-10 employeesEXEMPT from classificationsNitaqat system does not apply
10-49 employeesSMALL classification5-24% Nationalization required
50-499 employeesMEDIUM6-27% Nationalization required
500-2999 employeesLARGE7-30% Nationalization required
3000-more employeesBIG8-30% Nationalization required
4 Compliance-Related and Disciplinary Zones
Blue zone
GREEN zone
YELLOW zone
RED zone
VIP category

INCENTIVES:
  • Can hire anybody from any part of the world.
  • Easier visa processing
  • New visas with open professions through the electronic system.
  • Can change professions of their workers even to those that are restricted to Saudis, except jobs such as employment officials, receptionists, government liaison officials, treasury staff, and security officers.
  • Condition-free visa transfer: Can hire employees from Red zone and Yellow zones, and transfer their visas without the permission of their employers
  • Entitled to a one-year grace period if their municipal and professional licenses or commercial registrations were expired.
Excellent category

INCENTIVES:
  • Can apply for new visas once every two months.
  • Can change their foreign workers’ profession except to those restricted to Saudis (i.e.human resource managers; liaison officers; cashiers; receptionists; security guards)
  • A six-month respite after the expiry of their zakat & revenue certificates.
  • Can renew work permits of their employees.
  • Can recruit employees in red and yellow zones and transfer their visas without the approval of their employers.
Poor compliance

Punitive Measures:
  • No new visas
  • Can get only one visa after the departure of two expatriates
  • Cannot transfer visas and change professions.
  • No work permit renewal for employees who have completed six years.
  • No control on workers who can switch over to premium zone companies

Grace Period:
9 months to improve their status.
Non-compliance

Punitive Measures:
Banned from change of profession, transfer of visas, issuance of new visas and opening files for new branches.

    Grace Period:
    6 months to improve their status.
    Under the new policy, foreign workers employed by companies that are not in compliance are free to work for companies in compliance without acquiring permission from their employers at non-complying companies.








    Source : Saudi Gazette

    Friday, April 19, 2013

    गौरैया और हम

    अभी जब बिहार सरकार ने गौरैया को राजकीय पक्षी घोषित किया तो अचानक ही बचपन की कई स्मृतियाँ कौंध गईं। हम में से बहुत से लोग शायद ही इसे गौरैया के नाम से जानते हैं। खूबसूरत पक्षियों की भीड़ में इस साधारण सी दिखने वाली छोटी सी चिड़िया को हम कई स्थानीय नाम 'फुरगुड्डी', चुनमुन चिरई और न जाने कौन कौन से नाम से जानते हैं। अँग्रेजी में इसे Sparrow  कहते हैं। घरों में रहने वाली इसकी एक प्रजाति 'House Sparrow' कहलाती है। यह छोटी सी चिड़िया हमारी जिंदगी का हिस्सा हुआ करती थी। शायद आपकी भी जिंदगी का हिस्सा रही हो।
         सुबह-सुबह चूँ-चूँ की आवाज़ से जगा दिया करती थी। कभी उड़ कर इस कोने तो कभी उड़ कर उस कोने। पुराने घरों में बीच में आँगन हुआ करता था और उसके चारों ओर कमरे हुआ करते थे। आँगन से उड़ कर घर में आ जाया करती थी गौरैया। हमारे घर में अंदर के बरामदे में बेसिन के साथ एक आईना हुआ करता था। फुदक–फुदक कर उस आईने में अपनी छवि देख कर चोंच मारा करती थी। कई बार तो तीन-चार गौरैया एक साथ मिल कर आईने में चोंच मारा करती। शायद दूसरी तरफ अपने जैसी ही कोई चिड़िया देख कर उत्सुक हो जाती थी। कई बार तो तंग आकर हमलोग आईने को कपड़े से ढ़क दिया करते थे। तो भी चोंच से कपड़े को हटा कर आईने में चोंच मारा करती थी। माँ जब चावल चुनती और चावल के कंकरों को फेंकती तो फुदक कर उस पर टूट पड़ती। फिर माँ थोड़ा चावल के दाने भी छिड़क देती, जिसे खा कर वो फुर्र से उड़ जाया करती थी। कई बार आपस में खेलती, लड़ती और काफी शोर करती, तो मेरी बहन उसे डांट देती। पता नहीं कैसे वो चुप भी हो जाया करती थी। परेशानियाँ भी होती थीं, पर उसकी चूँ-चूँ अच्छी भी लगती थी। गाँव जाया करता तो वहाँ भी दिखती थी। उस जमाने में जब बच्चों के लिए आज की तरह ज्यादा खिलौने नहीं हुआ करते थे, तो यही चिड़िया मन बहलाने का काम करती थी। कई लोग रोते हुए बच्चों से कहा करते-'आ रे चिरइयाँ, ,ऊआ ला, बिस्कुट ले आ' और यह सुन कर बच्चे चुप हो जाते। तब माता या पिता बच्चे की बगल में बिस्कुट रख दिया करते, जिसे देख कर बच्चों को ऐसा लगता जैसे सचमुच चिड़िया ने ही बिस्कुट ला कर दिया हो। एक स्वाभाविक आत्मीयता हो जाती थी बच्चों की, इस चिड़िया के साथ। गौरैया जब अनाज के दाने चुगती तो बच्चे उसे पकड़ने की कोशिश करते। पर फुर्र से उड़ जाती थी गौरैयाएक सहज ही खेल का माहौल हो जाता। पर आजकल बहुत कम दिखती है गौरैया। न जाने कब वो हमारी जिंदगी से दूर होती गयी। प्रकृति के साथ हम मनुष्यों का यह रिश्ता भी न जाने कब खतम हो गया।
         कोंक्रीट के जंगल बढ़ते चले गए। घरों की डिज़ाइन में परिवर्तन हो गया। अब शायद ही किसी घर में खुला आँगन होता है। इन घरेलू परिंदों के ठिकाने खतम हो गए। आजकल मोबाइल के बढ़ते टावर के रेडियशन से भी इनकी संख्या घट रही है। मनुष्यों के साथ रहना पसंद करने वाली इस चिड़िया की घटती हुई संख्या निश्चित ही चिंता का विय है। तो क्या इस संबंध में कुछ किया जा सकता है। अगर इच्छाशक्ति हो तो निश्चय ही कुछ हो सकता है।
         वर्ष 2010 से 20 मार्च को 'विश्व गौरैया दिवस' के रूप में मनाने की शुरुआत हुई है। डाक विभाग ने भी गौरैया पर एक डाक टिकट जारी किया था। ऐसे में बिहार सरकार द्वारा गौरैया को राजकीय पक्षी घोषित करना एक स्वागत योग्य कदम माना जा सकता है। पर सिर्फ इस से ही काम नहीं चलेगा। हमलोगों को भी अपने स्तर से प्रयास करना होगा। आज हम लोग अपने अपार्टमेंट में/घरों में गमले में पौधे लगते हैं। सुबह शाम उसमें पानी डाल कर उसे सींचते हैं। बाज़ार से खरीद कर तोता या कुत्ता लाते हैं और उन्हें पालते हैं। यह एक प्रयास ही तो है प्रकृति से जुड़े रहने का। तो क्या हम अपनी इस स्वाभाविक सदस्य के लिए कुछ नहीं कर सकते, जिसे किसी बाज़ार से खरीद कर नहीं लाना है। बस अपनी जिंदगी का, अपने घर का थोड़ा सा स्थान देना है। मुझे लगता है कि थोडी कोशिश तो जरूर कर सकते हैं।

    Tuesday, April 16, 2013

    BIHAR DIVAS: UNITING BIHARIS WORLDWIDE

    Celebrated on 22nd March to commemorate the State’s separation from Bengal on the day in 1912, Bihar Divas is the one day of the year when over 103 million Biharis, regardless of their individual beliefs, can come together in shared experience; an experience that binds Biharis around the globe to this remarkable land and its people.
    In our busy daily life schedules we are mainly focused in earning bread and butter for ourselves and our family. We hardly think of anything else but occasions like Bihar Divas springs us a chance to think about our root identity. The glorious history of Bihar gives us a sense of pride and the recent developments in the state enthuses us with the feeling of Being Bihari. Why shouldn’t we feel ourselves lucky to be citizens of that place in the world that is the cradle of Hinduism, the incubator of Sufism, the birthplace of Buddhism, Jainism and the tenth guru of Sikhs? Time and again the state has proved the saying right that ‘what Bihar does today the world adopts tomorrow’. Now a day when the whole country is talking about corruption, Bihar became the first state to provide online information about the property of government servants and to adopt Right to Service Act; according to that every work should be finished in a fixed time schedule. Balika Cycle Yojna and reservation of fifty percent seats to women in panchayat increased participation of women in the process of development. Many more things are there of which we can be proud of.
    When the present government got the mandate to reform the state which had been continuously lagging behind, it also thought about its migrated citizens. To remain in touch with them and to address their problems in a suitable way, the government decided to form Bihar Foundation on 24th Nov. 2006. Later on, it was registered as a society under Dept. of Industry, Govt. of Bihar on 27th July 2007. There had been so many organisations working in the name of Bihar and established by the migrated people of Bihar throughout the globe but Bihar Foundation provided them an opportunity to come under one umbrella and work conjointly for the welfare of Bihari diaspora and for development of the state of Bihar.
    With the objectives of Bonding, Branding and Business, Bihar Foundation endeavours to unite Biharis worldwide. The chapters of the Bihar Foundation are basically the extended arms of the foundation which embraces the migrated Biharis. The chapters functioning around the globe organises some events from time to time which provides a platform for Biharis to know each other at a place away from their home and to trace the oneness which they carry with themselves. Whether it is the cultural commonality, linguistic loyalty or geographical gusto, all comes with the essence of Biharism. Celebration of Bihar Divas is the best possible way to render the voice of Being Bihari. It not only unites the Biharis globally but at the same time fosters the feelings to do something for the motherland.
    It has been observed that the day is celebrated all over the world by the NRBs with the same pomp and gaiety as it takes place in Bihar. The folk dances, music, quiz, various competitions, arts and craft exhibition, Bhojpuri film festival, seminar are the main activities which take place this day. Bihari cuisines are also served to remind the delicacies which we eat from generations and hardly find at our workplace. This day the foundation also recognizes the work done by the passionate sons of Bihar. For last three years, it has been celebrated in five cities of India namely at Mumbai, Chennai, Bangluru, Kolkata and Delhi and at eight places abroad namely at California, New Jersey, USA, Canada, Australia, UAE, Qatar, Bahrain and Saudi Arab.
    There are many Bihar based organisations who are not associated with the foundation have also desired to celebrate Bihar Divas at their respective places. The people of Bihar, who migrated in the second wave of migration and formed countries like Fiji, Surinam, Mauritius, and Trinidad and Tobago, now also want to trace their roots in Bihar. It's because of the fact that Bihar Divas celebration has acted as a platform to inform the diaspora and other people about recent developments in the state and its glorious history and heritage. It also provides an opportunity to connect the diaspora with their motherland and their ethnic brethren. Few years before most of the diaspora people used to hide their identity. Now, it has been observed that most of them express themselves as being Bihari and Bihar Divas celebration has definitely played vital role in rendering their voice. The occasion gives a feeling of pride, self respect and has given root identity to the diaspora which was lost earlier. Technology has also played significant role in spreading the message of Bihar Divas. USA Chapter of the foundation arranged for the Live Webcast of Bihar Divas celebration of the Gandhi Maidan, Patna in 2010. This increased the audience base. Social media platforms like facebook and twitter also added glory to this celebration.
    Although the history of Bihar can be traced back to the history of civilization, nevertheless Modern Bihar has completed hundred years of its formation last year. It’s again a time of leadership and hope, as a developing Bihar seeks to become a player of significance. On 6th March 2013, even the Prime Minister of India praised Bihar for its growth and development in his tweet. The time has come for a strong and sustained engagement between Bihar and its children and Bihar Divas has definitely played significant role in uniting Biharis worldwide.

    Saturday, January 26, 2013

    Bihar's Image Crisis

    "So, how was I treated?
     
    I’d dressed as conservatively as possible, in a long sleeve salwaar kameez. In fact, I’d decided to wear Indian clothes for the whole trip, in an attempt to blend in. I thought that if I dressed in a traditional way, I was less likely to be hassled. But still, I looked around nervously for the first sign of any man who was likely to misbehave with me. After all, Biharis have a reputation.
     
    Yet, it didn’t take me long to realise that something was not quite right. The men’s behaviour didn’t seem to match their reputation at all. People greeted me with innocent curiosity. What’s more, they didn’t seem aggressive or uncouth. Rather, they were simple and genuine, and dignified."
     
    Today, when I was going through these lines of a post named 'Bihar's Bright Future' by travel writer Sharell Cook, suddenly my mind switched back and reminded me words of a young NRI girl from USA who visited Bihar during 'Know India Program' in January 2011. She shared with me that she was very reluctant to visit Bihar. She had been told that Bihar is a lawless and very poor state. She would find beggars everywhere who would snatch all her money and other belongings. Her room was at the first floor of the hotel. There was a Glass window in the passage. On the first day of her visit she asked me if it is safe. I assured her about safety and showed the police van which was outside hotel as an escort to the group. Somehow she got convinced. This was the first time when this program of Ministry of Overseas Indian Affairs, Govt. of India was organised in partnership with Bihar and a team of thirty seven students from twelve countries were on a visit to Bihar. After ten days of visit to the different places, I asked   every one of them to fill a Feedback form. To my surprise, not even a single person had written about misbehaviour or any concern about safety. In fact most of them said that on contrary to their ill image Biharis are cordial, polite and helpful. Bihar is a nice place and they would like to visit here again. Before leaving, they flooded the hotel boys and bus conductors with gifts.
     
    Another such incident as shared by a businessman also throws light on the real picture of Bihar. The incident goes like this - He was on a pilgrimage to Bihar with his family. They got delayed in evening prayer and rituals in a Jain temple. It was almost ten in that winter night. When they came outside the temple, there was neither any person nor any vehicle. Their hotel was about two and a half kilometer from there. Anxiously, they started to walk towards the hotel. Hesitatingly, they knocked at a door. A person who looked to be in his fifties opened the door. After knowing the situation, he asked them to follow him. They had no other option, however skeptically, they moved with him. That person woke up an auto driver and asked him to drop the family up to the hotel. At the same time he instructed the auto driver not to take money from them. I saw a different kind of faith in the eyes of this Jain businessman when he was sharing this incident with me. Now, that businessman has been setting up a diamond cutting and polishing plant in Bihar.
     
    This doesn't mean everything is fine in Bihar but these incidents reflect the inborn attributes of Biharis and of Bihar. At the same time, above incidents clearly indicate what we have been losing due to ill image and what we could get if image will be improved. So, isn't it necessary to work towards Image management? I think it is. So who will work for it? What would be the plan? How it would work? Is the Govt. doing it right? Let's ponder over these issues in my next post.