Saturday, April 21, 2012

अपर्णा : सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग से निकलती वतन लौटने की राह

View of a block of the building coming under APARNA
बात सन 2009 की है। मुंबई के धारावी में बिहारी मूल के लोगों के एक संगठन अंजुमन-ए-बाशिंदगाने-बिहार के कार्यालय में अहसान हुसैन, अनवर कमाल, मुखियाजी एवम अन्य लोगों से मुलाक़ात होती है। मुखियाजी कभी बिहार में मुखिया हुआ करते थे। रोजी-रोटी की तलाश में मुम्बई आना पड़ा, पर तमाम दिक्कतों के बाद भी सामाजिक कार्य करने की आदत नहीं छूटी। शायद इसीलिए आज भी लोग उन्हे उनके नाम की बजाय मुखियाजी ही बुलाते हैं। वहीं हुई मुलाक़ात में कई लोग अपनी दुकान पे आने का न्योता देते है। अहसान हुसैन एवम अनवर कमाल के साथ मैं निकाल जाता हूँ कुछ लोगों से मिलने के लिए। लेदर की एक दुकान में अहमद भाई अपने बनाए जैकेट दिखाते हैं। एक एल्बम दिखाते हैं जिसमें जैकेट के कई डिज़ाइन हैं। बड़े ही गर्व से ताते हैं कि यह डिज़ाइन अक्षय कुमार के लिए बनाया था, फलां फिल्म के लिए। बातों में पता चलता है कि धारावी में लेदर के काम में बिहार के काफी लोग लगे हुए हैं। कई लोगों ने तो मेहनत कर के काफी अच्छा स्थान बना लिया है, पर कई लोग ऐसे भी हैं जो अभी भी संघर्ष कर रहे हैं। उनकी हालत अच्छी नहीं है। बातों-बातों में उनसे पूछा कि यही काम आपलोग बिहार में क्यूँ नहीं करते। तो जवाब था कि अगर सरकार सुविधा दे तो वहाँ भी कर सकते हैं। कौन अपने घर परिवार, अपनी ज़मीन से दूर रहना चाहता है। इस बात में उम्मीद की एक किरण दिखाई दी।
कुछ समय के बा बिहार फ़ाउंडेशन के मुंबई चैप्टर के औपचारिक उदघाटन का कार्यक्रम तय हुआ। इस उदघाटन कार्यक्रम के दौरान कुछ लघु एवम मध्यम उद्यमियों की एक बैठक माननीय उप-मुख्यमंत्री महोदय के साथ तय हुई। श्री टी0 वी0 सिन्हा जो मुंबई चैप्टर के उपाध्यक्ष भी हैं, की तैयारियों और सटीक प्रेजेंटेशन के कारण बैठक सफल रही। श्री सुशील कुमार मोदी, माननीय उप-मुख्यमंत्री बिहार ने लोगों को हर संभव मदद का भरोसा दिया, जिसके फलस्वरूप लोगों ने प्रयास शुरू किया। एक नए आइडिया का जन्म हो चुका था, बस जरूरत थी तो उसे मूर्त रूप देने की।
अहसान हुसैन ने तमाम छोटे-बड़े उद्यमियों के घर जा-जा कर उनसे बात की। इसी क्रम में ज़री के काम में लगे इफ़्तेखर अहमद से मुलाक़ात हुई। इस क्षेत्र में भी बिहार के काफी लोग काम कर रहे थे। ज़्यादातर कारीगर। इफ़्तेखर अहमद ने ज़री के काम में लगे बिहारी लोगों को संगठित किया। इस तरह धीरे-धीरे कर के लगभग 150 लोग जुड़ गए, इस प्रयास से। सबों ने हस्ताक्षर कर के बिहार फ़ाउंडेशन मुंबई चैप्टर को अपना प्रस्ताव दिया। कोई पाँच लाख तो कोई 50 लाख तो कोई उस से भी ज्यादा का निवेश करना चाहता था बिहार में। इस तरह कुल मिलकर समेकित निवेश लगभग 30 करोड़ का हो गया। अब प्रश्न था इस प्रयास के लिए एक जगह का जहां ये लोग अपनी यूनिट को स्थापित कर सकें। सर्वप्रथम इसके लिए कंपनी एक्ट के सेक्शन 25 के तहत एक नॉन-प्रॉफ़िट कंपनी के रूप में रजिस्ट्रेशन कराया गया, जिसका नाम रखा गया APARNA, यानि Association Of Progressive And Resurgent Nationalist Awamलोगों ने श्री अहसान हुसैन को इस कंपनी के डाइरेक्टर की ज़िम्मेदारी सौंपी। एसी के कारोबार से जुड़े श्री हुसैन पिछले 15 सालों से धारावी में बिहारियों के लिए सामाजिक कार्य में सक्रिय रहे हैं। और संभवतः इसी कारण लोगों ने उनपर अपना भरोसा दिखाया। इसके बाद बियाडा में ज़मीन के लिए आवेदन किया गया। बियाडा की तरफ से पटना के फतुहा में ज़मीन आवंटित की गयी।
आम तौर पर स्टील या एस्बेस्टस की चादरों से बड़ी-बड़ी शेड बना कर कारख़ाना लगाया जाता है। पर यह एक अलग मोडेल था। उसके लिए एक बहुमंज़िली इमारत बनाने की परिकल्पना की गयी, जिसमें सभी अपनी आवश्यकता के अनुसार जगह ले सकें ठीक वैसे ही जैसे मुंबई में गाला डालकर काम करते हैं लोग। कोई पाँच सौ वर्गफीट तो कोई एक हज़ार तो कोई पाँच हज़ार। जिसकी जितनी जरूरत। और इस इमारत का डिज़ाइन तैयार किया देश के जाने माने आर्किटेक्ट श्री हाफिज़ कौनट्रैक्टर ने। इस औद्योगिक संकुल में ना सिर्फ निर्माण कार्य की सुविधा होगी बल्कि अन्य मूलभूत सुविधाएं भी विकसित की जाएंगी। एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, एक पोस्ट ऑफिस, एक एटीएम और बैंक की सुविधा रखे जाने का प्रस्ताव है। अगर सब कुछ ठीक रहा तो अगले फेज़ में एक प्राथमिक स्कूल की सुविधा भी विकसित की जाएगी वहाँ।
24 अप्रैल 2012 को अक्षय त्रित्या के पावन अवसर पर इस भवन के निर्माण कार्य का भूमि पूजन और शिलान्यास का कार्यक्रम है। बिहार फ़ाउंडेशन के प्रयास से एक और सपना सच होने वाला है। अभी वर्तमान में अपर्णा के प्रथम चरण में 350 उद्यमी और लगभग 4000 बिहारी मजदूर अपने वतन वापस आ रहे हैं, जो मुख्यतः सॉफ्ट लगेज एवम चमड़े से जुड़ी सामग्रियों का निर्माण करेंगे। प्रथम चरण में तीन टावरों का निर्माण होगा जिसका नाम भी बिहार की धरती के कर्मयोधाओं के नाम पर क्रमशः चन्द्रगुप्त, अशोक और शेरशाह रखा जाएगा। अब कुल निवेश 250 करोड़ से ज्यादा का हो गया है और इससे सीधे लगभग दस हज़ार लोगों को रोजगार मिलने की संभावना है। यह सिर्फ भावुक प्रयास ही नहीं बल्कि पूर्णतः आर्थिक भी है। सूक्षम, लघु और मध्यम स्तर के अनेक निवेशकों के मिलने से समेकित रूप से एक बड़ा निवेश हो पा रहा है। यह वह क्षेत्र है जिसमें अपार संभावनाएं हैं। रोजगार के अवसर ज्यादा हैं। कई विकसित देशों ने इस मॉडेल पर काम करके विकास की राह पकड़ी है। आज बिहार की जो स्थिति है उसके अनुसार सूक्षम, लघु और मध्यम स्तर के उद्योगों से विकास की राह पर कदम रखा जा सकता है। कई लोगों को रोजगार मिल सकता है। गाँवों के छोटे-छोटे घरेलू उद्यमों को बाज़ार मिल सकता है।
आज पटना में जिस हिसाब से ज़मीन की कमी दिख रही है। उस हिसाब से हॉरिजॉन्टल ना बढ़ कर वर्टिकल बढ़ना भविष्य के लिए एक मॉडेल होगा। अपर्णा संप्रति अपने आप में पहला ऐसा प्रयास है, जो  बहुतेरे लोगों को एक छाते के नीचे लाने के लिए एक उदाहरण होगा। प्रवासी लोगों के रिवरस माईग्रेशन के लिए एक मॉडेल होगा अपर्णा। साथ ही यह भी उम्मीद है कि जब यह बिल्डिंग बन कर तैयार होगी तो जिस तरह लोग ताजमहल या गोलघर को देखने आते हैं, उसी तरह इस बिल्डिंग को भी देखने आएंगे। अपनी ज़मीन से जुडने और उसे समृद्ध बनाने हेतु लोगों का समेकित प्रयास जो है यह।

4 comments:

  1. Good Effrot!

    This is required and necessary.

    This is an approach where improvements can be made despite government.

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  2. Congrats Vikas, Great job indeed!! And a great effort to repay the debt of your motherland. Many Many Congratulations.

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  3. It's heartening to not that people like you with jest and sincerity can overcome all odds! A job well Donq..Comgrats Vikas

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  4. Good News for all bihar residential people........... we should also support to govt. in industrial project...

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