Tuesday, September 13, 2011

मॉरिशस और बिहार : दिल से जुड़े हैं दिलों के तार

Mr. Somduth,
वैसे तो पटना का रविन्द्र भवन कई ऐतिहासिक पलों का गवाह बना है पर 5 सितम्बर 2011 की शाम कुछ खास थी. लगभग 200 साल पहले बिहार की मिटटी के सपूत जो गिरमिटिया बन कर मॉरिशस ले जाये गए थे आज उनके वंशज गायक होकर वापस अपने पुरखों की धरती पे आये थे. मॉरिशस के सुन्दर मनराखन कॉलेज के छात्र-छात्राएं पहली बार बिहार में रामायण की चौपाइयों का गान प्रस्तुत करने आये. ये वो छात्र थे जो वहां हुई रामायण गान प्रतियोगिता के विजेता बने थे.  
Dr. Sukhda Pandey, Minister, ACY, inaugurating the program
जैसा कि मॉरिशस सनातन धर्मं टेम्पल फेडरेशन के अध्यक्ष श्री सोमदत्त जी कहते हैं कि ''जब बिहार, यू०पी0 से लोगों को मॉरिशस ले जाया गया था तो हमारे पुरखे अपने साथ राम चरित मानस ले गए थे. जब दिन भर वो लोग कड़ी मेहनत करते थे तो इस दौरान उन्हें चाबुक से मारा जाता था. उस कठिन दौर में वो लोग शाम के समय रामायण गाते थे ताकि अपने दर्द को भूल सकें. रामचरित मानस ही वो चीज़ थी जो उनलोगों को मॉरिशस में रहने की प्रेरणा देती थी, दर्द सहने की शक्ति देती थी.'' वो आगे कहते हैं कि 'आज भी हमलोग मॉरिशस में भारत को 'भारत माँ' कहकर ही बुलाते हैं. आज भी जब वहां पे बच्चा जन्म लेता है तो हम कहते हैं की घर में राम आये हैं. हम वहां होली दिवाली, दशहरा सब कुछ उसी तरह मनाते हैं जिस तरह यहाँ मनाया जाता है. आज यहाँ आकर ऐसा लग रहा है जैसे हम अपने घर में आये हैं.' ऐसे उद्गार सुनकर वहां मौजूद सबों में आत्मीयता का भाव स्वतः प्रस्फुटित हो गया था.

Ramayan Chanters chanting verses of Ramayan
मंच संचालक की भूमिका निभा रहे जय गोविन्द हीराजी ने सर्वप्रथम भोजपुरी में सभी कलाकारों से आग्रह किया कि 'कार्यक्रम के शुरुआत करे के पहिले ऊ धरती माँ के सत-सत नमन जे धरती से हमनी के पुरखा लोग गइल रहे' फिर उन्होंने कहा कि 'आज हम यहाँ ई बतावे आइल बानी कि बरसों दूर रह के भी हमनी के आपन संस्कृति नइखी भुलले. और एगो बात और बतावे के चाह तानी कि आज जब हमनी के आपन राष्ट्रपिता शिवसागर रामगुलाम जी के स्मारक देखे गईनी त अइसन लागल कि ऊ मुस्कुरा के हमरा से कहनी कि गिरमिटिया बन के गइनी और देख का बन के आ गइनी.' हमनी के बिहार सरकार के आभारी बानी कि ऊ हमार राष्ट्रपिता के स्मारक बन्वैलस. ई रामायण के गान त हमनी के और जगह भी गइनी पर जे अपनापन बिहार में लागता ऊ और कहीं महसूस न भइल.

'ओम' के उच्चारण के साथ कार्यक्रम की शुरुआत की गयी. तत्पश्चात 'श्री गुरु चरण सरोज रज' की स्तुति की गयी और phir कलाकारों ने 'आओ राम, संवारो राम, इस जग के बिगड़े काम' की प्रस्तुति कर संपूर्ण वातावरण को राममय कर दिया. ऐसा लग रहा था जैसे किसी मंदिर में बैठे हैं और अपना सर्वश्व भगवान को अर्पित कर दिया है. उसके बाद अयोध्या कांड की चौपाईयों में से 'उठो भरत राम मिलने आये हैं' का गायन सबको भाव विभोर किये जा रहा था. भ्रात्रि मिलन के ऊस दृश्य को अपने गायन से जीवंत कर दिया था उन छात्रों ने.राम और केवट  प्रकरण जिसमे केवट प्रभु श्री राम की नैया ये कहते हुए पार लगाते हैं कि जब इस धरती से मेरे प्राण जाएँ तो मैं आपके दर पे आऊँ का गायन बरबस ही मोक्ष की आशा में प्रभु की वंदना करने की भाव विह्वल प्रस्तुति थी.  इसी प्रकार रामायण के विभिन्न प्रकरण की चौपाइयों का गायन कर लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया था उनलोगों ने. कार्यक्रम ख़तम होने के पहले एक होली गीत भी प्रस्तुत किया गया,जिससे बरबस ही बिहार के गावों में विभिन्न टोलिओं द्वारा होली के समय गए जाने वाले गीतों की याद ताज़ा हो गयी.ऐसा लगा ही नहीं कि वो किसी दूसरे देश से आये हैं. कुछ घंटों में ही जो संस्कृति और अपनापन महसूस हुआ उसकी याद हमेशा रहेगी.
भारतीय सांस्कृतिक सम्बद्ध परिषद् (ICCR), मॉरिशस सरकार एवं कला, संस्कृति और युवा विभाग, बिहार के सहयोग से आयोजित इस कार्यक्रम में मुख्य अथिति के रूप में आमंत्रित श्रीमती सुखदा पांडेय, मंत्री, कला, संस्कृति एवं युवा विभाग, बिहार ने दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम की शुरआत की. अपने भाषण में माननीया मंत्री जी ने बताया कि ''मैं शाहाबाद से आती हूँ और श्री शिवसागर रामगुलाम जी के पुरखे भी उसी जगह रहते थे. इसलिए हमारा रिश्ता बहुत पुराना है, आत्मीय है. मैं यहाँ इंदिराजी की बात को दुहराना चाहती हूँ कि मॉरिशस वास्तव में 'लघु भारत' है.'' माननीया मंत्री जी ने सभी उपस्थित लोगों को फाउंडेशन की तरफ से नालंदा विश्विद्यालय अंकित मेमेन्टो देकर सम्मानित किया. अन्य उपस्थित लोगों में कला, संस्कृति एवं युवा विभाग के प्रधान सचिव सह मुख्य कार्यपालक पदाधिकारी बिहार फाउंडेशन श्री सी० ललसोता ने उपहार स्वरुप एक बैग सभी आगंतुकों को दिया, जिसमे बिहार से सम्बंधित फिल्मों की डीवीडी, बुकलेट इत्यादि थे.
मुझे याद नहीं कि भारत में कहीं भी रामायण गायन की प्रतियोगिता होती है. अब तो रामलीला का मंचन भी बहुत कम जगहों पर ही होता है. अक्सर ऐसे कार्यक्रम हमें हमारी संस्कृति की याद दिलाते हैं. अगर हम सीखना चाहें तो यह अवश्य ही सीख सकते हैं कि हम चाहे कितनी भी तरक्की कर लें पर हमें अपने संस्कारों को नहीं भूलना चाहिए. आज लगभग दो सौ सालों बाद भी उन लोगों ने रामायण को अपने अन्दर जीवित रखा है. ख़ुशी होगी अगर हमारे देश, हमारे राज्य में भी रामायण के गायन, अभिनय/मंचन से सम्बंधित प्रतियोगिता हो ताकि आने वाली पीढ़ी भी अपने गौरवपूर्ण अतीत को जान पाए और उससे कुछ सीख पाए. हो सकता है ऐसा करने से हमारी आने वाली पीढ़ियों में वो संस्कार दिखे जिसकी इच्छा सभी करते हैं और जो शायद आज खत्म होता जा रहा है.
खैर, कार्यक्रम के पश्चात् रात्रि में होटल में कुछ लोगों के साथ हमारी मण्डली जमी, जिसमे कई सारी बातें निकली. मॉरिशस में भी वो लोग कपिल शर्मा की कॉमेडी पसंद करते हैं. उनलोगों ने कई चुटकुले सुनाये जो अक्सर हमलोग एक-दूसरे को सुनाते हैं. गायकी का दौर चला. हिंदी और भोजपुरी गाने गाये उनलोगों ने. कहीं से भी ऐसा नहीं लग रहा था कि वो बाहर से आये हैं. बीच-बीच में कभी-कभार वो लोग किसी भाषा में बात करते जो हमारी समझ में नहीं आ रही थी. पूछने पर पता चला कि वो वास्तव में फ्रेंच भाषा की एक बोली (डैलेक्ट) है. उनकी भोजपुरी और हमारी भोजपुरी में सिर्फ स्वरों के उतार चढाव (एक्सेंट) का फर्क है. जो सम्प्रति फ्रेंच भाषा के प्रभाव के कारण है. पर इस मामूली से फर्क के बीच भी हम एक-दूसरे को एक-दूसरे के करीब ही पाते हैं, क्यूंकि हमारे दिल के तार सदियों से आपस में जुड़े हुए जो हैं. और शायद इसीलिए मॉरिशस को 'लघु भारत' कहते हैं.


Thursday, August 4, 2011

बिहारियों के तकनीकि विकास का सपना : अमित दास

आज भी इंटर की परीक्षा के बाद ज्यादातर अभिभावक अपने बच्चों में जिस भविष्य की तलाश करते हैं वो है मेडिकल और इंजीनियरिंग. जैसे ही इंटर की परीक्षा का परिणाम आता है लोग चेन्नई, बंगलुरु और कोटा जैसे शहरों का रुख करते हैं. इन शहरों में जाने वाले लोगों में ज्यादातर बिहार के लोग होते हैं. ये लोग बिहार से बाहर इसलिए जाते रहे हैं क्यूंकि बिहार में ऐसी सुविधा उपलब्ध नहीं थी. मजबूरियों में लोग अपने खून पसीने की कमाई दूसरे राज्यों में दे आते रहे हैं. कई लोग तो इन मजबूरियों के कारण अपना सपना पूरा नहीं कर पाते थे. ऐसा ही एक सपना अधूरा रह गया जो अररिया जिले के मृदौल ग्राम निवासी स्वर्गीय मोती बाबू ने भी देखा था - अपने बेटे को इंजिनियर बनाने का. उनका सपना तो पूरा नहीं हो सका पर आज उनके पुत्र श्री अमित दास कुछ ऐसा कर रहे हैं जिससे बिहार के उन तमाम लोगों का इंजिनियर बनने का सपना जरुर पूरा होगा जो किसी भी आभाव के कारण अपना सपना पूरा नहीं कर पाते थे.

अमित दास से मेरी पहली मुलाकात पिछले 'प्रवासी भारतीय दिवस' के दौरान हुई थी. सौम्य, शांत और हंसमुख व्यक्तित्व के मालिक अमित दास ने महज ३१ साल की छोटी सी उम्र में जो भी हासिल किया है वो किसी के लिए भी प्रेरणा का स्रोत हो सकता है. एक मुलाकात में अमित बताते हैं कि किस प्रकार उन्होंने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा सुपौल के बीरपुर से पूरी की, जहाँ छात्र बोरे पे बैठ के पढाई किया करते थे. स्कूलों में बेंच-डेस्क की सुविधा तक नहीं थी वहां पे. स्कूल की पढाई करने के बाद जब पटना के ए० एन० कॉलेज में नामंकन हुआ तो ऐसा लगा जैसे बहुत बड़ी चीज़ हासिल कर ली. उसके बाद वो भी और लोगों की तरह दिल्ली चले गए. काफी समय तक डी टी सी की बसों में धक्के खाए. उन दिनों बस यही सोंच रहती थी कि अपनी कमाई से अगर एक ट्रैक्टर खरीद पाए तो कुछ कर पाएंगे. धीरे-धीरे पता चला कि कंप्यूटर का कोर्स करने से कुछ अच्छा हो सकता है. पर इसमें भी दिक्कत थी. ज्यादातर बिहारियों की तरह अंग्रेजी कमजोर थी. पर रास्ता दिख गया था और वो मेहनत करने से पीछे नहीं हटने वाले थे. बिहारी लोग तो जन्मजात मेहनती होते हैं बस मौका मिलना चाहिए या रास्ता दिखाई देना चाहिए. पूरी ताकत लगा देते हैं बिहारी लोग. अमित दास ने भी पूरी ताकत लगा दी. धीरे-धीरे वे microsoft certified कंप्यूटर प्रोफेशनल बन गए. यहाँ से उनकी जिंदगी ने यू-टर्न लिया. अपनी एक कंपनी खोली. समय के साथ काम बढ़ने लगा. फिर मौका मिला और वो ऑस्ट्रेलिया चले गए. वहां भी अपनी एक कंपनी खोल ली. मेहनती अमित की किस्मत ने साथ दिया और वो तरक्की की सीढियाँ चढ़ते गए।

तरक्की की सीढियाँ चढ़ते हुए भी अमित दास को अपने पिता का सपना पूरा करने का ख्याल था और इसी उद्देश्य से उन्होंने इन्नोतेक एडुकेशनल सोसाएटी बनाई. इसी दौरान बिहार फौन्देशन के संपर्क में आये. उनके प्रोजेक्ट में हर संभव सहायता की गयी. ज्यादातर देखा गया है की जो भी लोग बिहार में निवेश के लिए आते हैं वो पटना या उसके आस-पास ही निवेश करना चाहते हैं. पर अमित दास तो अपने जिले में ये कॉलेज खोलना चाहते थे ताकि बिहार के उस सुदूर इलाके के लोगों का सपना न टूटे. सरकार की तरफ से आवश्यक औप्चारिक्तायें पूरी की गयीं. ज़मीन उपलब्ध करायी गयी. 16 अगस्त 2010 को फौर्बीसगंज में उनके कॉलेज का शिलान्यास हुआ. 110 करोड़ की लागत से बनने वाले इस कॉलेज में विश्वस्तरीय पढाई की व्यवस्था होगी. TAFE ऑस्ट्रेलिया के साथ उच्च स्तरीय शिक्षा की व्यवस्था की गयी है. यह सुविधा सेटेलाईट के माध्यम से भी सीधे ऑस्ट्रेलिया से उपलब्ध करायी जाएगी. पूर्व से ही छात्रों के प्लेसमेंट की भी पूर्ण व्यवस्था की गयी है, जो न सिर्फ भारत बल्कि विश्व स्तर तक होगी।


अमित दास का जज्बा बिहार के लिए सिर्फ अपने निवेश तक ही सीमित नहीं है. वो ऑस्ट्रेलिया में न सिर्फ बिहारियों को संगठित कर रहे हैं बल्कि एक australian कंपनी को भी बिहार में निवेश करने के लिए प्रेरित भी कर रहे हैं. इस कंपनी के प्रतिनिधि जब भी भारत आते थे तो सिर्फ दिल्ली या मुंबई तक ही जाते थे. बिहार के बारे में तो जो भी उन्होंने सुना था उससे उन्हें बिहार आने में डर लगता था. अमित दास ने किसी तरह न सिर्फ उन्हें विश्वास दिलाया की बिहार बदल गया है बल्कि उनके बिहार आने जाने और रहने का खर्च भी खुद दिया. हमने उनकी मीटिंग CM के निवेश सलाहकार और वरिस्थ्तम IAS अधिकारी श्री एस० विजयराघवन से करवाई. इस मीटिंग में सम्बंधित अधिकारी भी शामिल हुए. अमित दास का प्रयास सफल हुआ और कंपनी के प्रतिनिधियों ने बिहार में निवेश करने की बात कही. उनके जाने के कुछ दिनों के बाद मेरे पास कंपनी के एक प्रतिनिधि रोबर्ट का मेल आया जिसमे लिखा था कि 'दुनिया के कई हिस्सों में हम बिज़नस कर रहे हैं पर जो व्यव्हार और सम्मान बिहार में मिला वो कहीं नहीं मिला और ये हमारे बिज़नस के लिए बहुत महत्वपूर्ण है'. सौर उर्जा से पानी को पीने लायक बनाने वाली ये कंपनी नालंदा और पटना में पइलोत प्रोजेक्ट के रूप में कम शुरू करेगी और फिर सफलता के बाद मशीन के निर्माण हेतु संयंत्र भी लगाएगी. अगर सब कुछ ठीक रहा तो अनुमानित निवेश लगभग २५ मीलियन डॉलर का होगा।

पिछले साल एक संस्था ने अमित जी को उनके सरह्निये कार्यों के लिए 'बिहारी अस्मिता सम्मान दिया. मुझे अच्छी तरह याद है जब अमित दास लोगों से अपने विचार बता रहे थे तो खचाखच भरे श्री कृष्ण मेमोरिअल हॉल में काफी देर तक तालियों की गरगाराहत गूंजती रही. जब भी अमितजी से बात होती है एक ताजगी का एहसास होता है. जिसे सुनकर सहसा ही ये विश्वास होता है कि अब किसी पिता का सपना नहीं टूटेगा. उसके बेटे परदेस से इतने काबिल होके बिहार को विकसित बनाने के लिए लौट जो आये हैं. उम्मीद है शीघ्र ही और अमित बिहार लौटेंगे और बिहार में कई इंजीनियरिंग कॉलेज खोलेंगे जिससे बिहार के छात्रों को बंगलोर, चेन्नई और कोटा नहीं जाना पड़ेगा और बिहार का पैसा भी बिहार में ही रहेगा.